Saturday, March 8, 2014

महिषामर्दिनी

हे माधवी ,हे संस्कारी
हे युगपरिवर्तनकारिणी
तुमने युगों को बदला है
युग परिवर्तन हेतु
मानवों और दानवों सहित
अवतारों को भी जन्म दिया है ,
राष्ट्र कि रक्षा हेतु
सैनिकों और सिंहों को
अपनी कालजयी कोख से
कोटि बार जन्म दिया है 
और समय आने पर
हल्दीघाटी में युद्ध भी किया है ,
वीरांगनाओं  कि सेना बना
दुश्मनों से लोहा लिया है
एक एक ने चार चार को
जमींदोज तक किया है
दुश्मनों के भरी पड़ने पर
लाज बचने हेतु जौहर भी किया है ,
और आज भी प्रत्येक क्षेत्र में
देश का मार्ग प्रशस्त करने हेतु
अपनी दैवीय क्षमता का प्रयोग कर
अगर्सर होने का प्रयत्न किया है
अपने परिवार को ससक्त करने हेतु
सवयम जीवन को आहूत किया है  .|



ये कविता मैंने आज महिला दिवस के उपलक्ष्य में अपने देश कीही नहीं अपितु सम्पूर्ण संसार की नारी जाती हेतु उनकी पूर्व शौर्य ,गाथाओं और कहानियों या जो भी उन्होंने सामजिक या वीरांगनाओं के सवरूप कार्य किये किये हैं ,समर्पित करता हूँ ,धन्यवाद सहित









Wednesday, March 5, 2014

एक सत्य घटना

मंथर गति से अपने सम्मुख
जाती हुई किसी भी छाया को देख
एक साधारण मानव भी जो
सवयम रिक्शा दौड़ाता
साइकिल को तीव्र गति से दौड़ाता 
मोटर कार के स्टेयरिंग को घुमाता
कार को ट्रक टक्कर से बचाता
कनखियों से छुप छुप के देखता
मंद मंद खिलखिलाता या मुस्कुराता
हलकी हलकी सीटी बजाता या
मंद मंद स्वर में कुछ कुछ गुनाता
उसके एकदम समीप से निकलता हुआ
कुछ गंदे गंदे  से कमेंट कस्ता हुआ
पीछे मुड़ मुड़ कर  देखता हुआ
नैन सुख प्राप्त करता हुआ
चोरों कि भांति भाग भी जाता
परन्तु फिर थोड़ी सी दूर जाकर
मोटर कार को  साइड में लगाकर 
अपनों बुशर्ट के बटन खोलकर
वृक्ष के नीचे खड़ा हो जात्ता
 पास आई तो देखा वो तो बहना थी
छाया नहीं वो तो नयना थी
वास्तव में ये मात्र एक कहानी नहीं
 दिल फेंक भाई कि सत्य घटना थी
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