Friday, November 6, 2015

एक अनोखी कहानी किन्तु सत्य (पार्ट ११ )

जब उसके तरकश में चलाने हेतु कोई तीर नहीं बचा ,और वकीलों ने भी और उसके यार दोस्तों ने भी कह दिया की भाई अब कुछ नहीं होने वाला और अब तुम्हारे मुकदद्मे ऐसे ही बीसियों या उससे भी ज्यादा साल चल सकते हैं ,और हो सकता है की उसे इस जन्म में तो ये मकान मिलने से रहा ,और वैसे भी मकान की पक्की रजिस्ट्री बड़े की पत्नी के नाम से है तो ,मिलने की उम्मीद भी कम ही है ,इससे तो ये ही अच्छा है की किसी भी तरह से फैसला कर लो और जो मिल जाए उसे लेकर मजे लो ,
पर वो भली भांति जानता था की बड़ा किसी भी तरह से फैसला नहीं करेगा ,दुसरे उसकी कमाई तो सीमित थी पर खर्चे बहुत  ज्यादा होते जा रहे थे ,घर का किराया ,खाने पीने के खर्चे ,बच्चों की शादी ,वकीलों की फीस ,गाड़ियों के खर्चे सब मिलाकर उसकी किराए की कमाई से ज्यादा ही पड़ते थे ,और बच्चों का सहयोग ना के बराबर ,वैसे भी बड़े की शादी  हो चुकी थी ,अब जो  किराये . का मकान था वो भी छोटा पड़ने लगा और जब कल को छोटे की शादी हो जायेगी तो और बड़ा मकान चाहिए ,समाज और मुहल्ले में  बदनामी भी काफी हो चुकी थी परन्तु उसे बदनामी या इज्जत जैसे शब्दों या चीजो से कॉिम फर्क नहीं पड़ता था ,फिर भी रहने  के लिए फ्री में एक मकान की जरूरत तो थी ही ,
इन सबके मद्देनजर उसने एक जबरदस्त फैसला ले लिया  की अब वो दोबारा से सभी रिश्तेदारों ,संस्थाओं और मित्रों का सहारा लेकर फिर भाई  साहब के पास जाएगा और उन लोगों की तरफ से दबाब बनाये जाने पर शायद भाई साहब फैसला करने के लिए राजी हो जाएंगे और उसे मकान का आधा हिस्सा दे देंगे ,
और फिर उसने सभी को एकत्रित करना शुरू कर दिया परन्तु उनमे से कोई भी व्यक्ति बड़े से जाकर कुछ कहने की स्तिथि में नहीं था इसलिए वो अक्सर मना ही कर देते ,परन्तु उसे  कुछ बड़े के दोस्तों और रिश्तेदारों ने साथ देने का वायदा कर दिया ,परन्तु उन्होंने कहा की वो कहेंगे कुछ भी नहीं ,चुप चाप   उसके समर्थन में जाकर खड़े हो जाएंगे ,और फिर एक दिन उसे मिलने जाने की तारीख तय कर ली गई |