Saturday, March 28, 2015

एक अनोखी कहानी किन्तु सच्ची (पार्ट ९ )

उसके बाद बीच वाले ने अपने जान पहिचान के गुंडों से जेल के अंदर ही भरसक प्रयत्न किये परन्तु  बड़े को पिटवाने और ब्लेड लगवाने के लिए भरसक प्रयत्न किये परन्तु किसी न किसी के सहयोग से हर बार बच जाता था क्योँकि जेल में अपने अच्छे कार्यों और अपने अच्छे व्यवहार के कारण  सभी अफसर तथा कैदियों से उसकी अच्छी जान पहिचान हो गई थी ,बड़े को कवितायें लिखने और सम्मेलनों में कविता पढ़ने का शौक था ,इसी प्रकार के कवि सम्मलेन जेल में भी हर महीने एक दो बार हो जाते थे जिनमे बड़े की कविताएं सभी कैदी और अफसर बड़े ही दिल से सुनते थे क्योँकि वो सभी कविताएं कैदीयोंं,विचाराधीन कैदियों और अफसरों के ऊपर ही होती थी और कुछ अपने कारण खुद  के दुःख सुख की भी ,कहने का तातपर्य है की सभी लोग बड़े के मुरीद हो गए थे ,और जेल में रहकर क्षात्रो को पढ़ाना और समय समय पर उनकी सहायता कर देना या जेल में उनके लिए किये हुए सुधारों में अफसरों से मिलकर कुछ ना कुछ करा देना शामिल थे  ,और एक समय तो ऐसा आया कि जेल में रहने वाले बड़े बड़े ,और प्रसिद्ध कैदी भी उनके पास आयकर धोक करने लगे ,जिसके कारण फिर  कोई भी बड़े से पंगा लेना ही नहीं चाहता था ,बल्कि एक बार एक विचाराधीन कैदी ने बड़े से कुछ उलटा बोल दिया   फिर तो दसियों कैदी और अफसरों ने उसको इतना मारा की बड़े ने ही उसे छुड़ाया ,तब उसने भी उसके भाई का ही नाम लिया ,बड़ा अंदर रहकर बिना पढ़े लिखे कैदियों के केसेस की चाजर्शीट पढ़कर उनको समझाता था तो सभी प्रभावित थे ,वो बड़े की खूब सेवा करते जैसे  की मालिश  आदि  करना ,उनको खाना पानी laakar देना ,कपडे धो देना आदि आदि 

लगभग १६ माह जेल में रहने के बाद एक दिन जज साहब ने खुद ही बेल दे दी ,और फिर बड़ा घर वापस आ गया ,बड़ा बहुत रोया  था उस दिन उसे ऐसा लगा जैसे की नया जन्म मिला हो और उस दिन दुःख के कारण बड़े के भाइयों माँ बहन के घर रोटी भी नहीं पकी ,सम्पूर्ण परिवार दुखी हो गया किबड़ा जेल से छूटा क्योँ ?उसके बाद लगभग २ माह तक तो ऐसा लगा की जैसे उसके मस्तिष्क ने काम ही करना बंद कर दिया हो ,फिर कहीं नार्मल होने के बाद अपना काम काज देखना शुरू किया जो सबकुछ समाप्त हो चुका था उसको किसी प्रकार पटरी पर लाने की कोशिश करने लगा ,और जितने भी सेल्स टैक्स ,इनकम टैक्स D D A या M C D  के केसेस थे सबको सही कराता कराता वो लगभग टूट सा चुका था क्योँकि जितना भी पैसा घर में या पार्टीज से लेना था वो या तो खत्म हो चुका था अथवा कुछ मर चुका था ,या मुकदद्मों में वकील आदियों को देने में काम आ चुका था ,पर ईश्वर की कृपा से पैसे की जरूरत भी पूरी होती जा रही थी कॉिम ना कोई हेल्प कर ही देता था ,
पिछले  दो वर्षों में बैंक ब्याज काफी हो चुका था ,अत; बैंक वालों ने मकान की नीलामी की घोषणा कर दी ये बात बीच वाले को पता थी क्योँकि उसी ने बैंकर्स को ऐसा करने के लिए प्रेरित किया था वरना वो कुछ भी नहीं कह रहे थे वो कह रहे थे की आराम से थोड़ा थोड़ा देते रहो ,पर अचानक नीलामी की सुन बड़े के पैरों के नीचे से मिटटी निकल गई ,यानी की बनी बनाई इज्जत मिनटों में खत्म होने वाली थी परन्तु फिर एक मसीहा आ गया जिसने उस बैंकर्स को पैसे dekar नीलामी रुकवाई और फिर कही जान छूटी |



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