Wednesday, March 4, 2009

मेरी सोच (पार्ट ४)

जहाँ के बाशिंदे महीनो ना नहाकर अपने शरीर में गंदगी एकत्रित कर लेते हैं ताकि गंगा जमुना नदी में नहाने पर दोनों नदियाँ पवित्र होकर पुन्य का भागी उन्ही को बनाए ,जहाँ पर पवित्रता केवल शरीर को साफ़ करने भर से ताल्लुक रखती है नाकि मन ,(ह्रदय ) को पवित्र करने से ,और नाही पुन्य कर्म करने से ,उनकी दिनचर्या ही ऐसी है की दिन निकला और सौच आदि करने के बाद पशुओं की भाँती उदर पूर्ति करने में लग जाते हैं ,
जिस देश में पत्नी को नौकरानी से भी कम इज्जत बख्शी जाती है क्योंकि नोकरानी तों काम के बदलेपैसा लेती है परन्तु पत्नी नोकरानी बन्ने के बावजूद अपने बाप से दहेज़ अडवांस में लेकर आती है ,जहाँ पर शिक्षा एवं गुरुसेवा ने व्यवसाय को गले का हार बना लिया है ,जहाँ पर दुष्टता ,क्रूरता ,चालाकी ,राजनीती की पर्याय बन चुकी है ,जहाँ पर क़ानून को अंधा क़ानून या जंगल का राजा ,अथवा अंधेर नगरी चोपट राजा तक कहा जाता है यानी के क़ानून भी मर्यादा हिन् हो गया है ,जहाँ पर धर्म के नाम का मतलब केवल पैसा उघाना है ,जहाँ पर असूलों की होली जलाने में फक्र महसूस किया जाता है ये सब बीते वक्त की कहानिया बन गई हैं ,जहाँ के किसान का घर हरित क्रान्ति के बाद भी अंधेरे में उजाला तलाशता फ़िर रहा है ,
जहाँ पर आस्तीनों में सौंप पालने का रिवाज है ऑर वो सौंप भी मौका मिलते ही जहर उगल देते हैं चाहे उनको कितना ही दूध क्यूँ ना पिला दो ,जहाँ मरे हुए लोगो को स्वर्ग में भी खाना भेजा जाता है परन्तु जिंदा व्यक्ति भूख से तड़फ कर मर जाता है ,जहाँ के लोग अच्छी बातें हजम करने में असमर्थहै और बुरी बातों से हाजमा दुरुस्त करते हैं जहाँ पर कहने के लिए तों शान्ति है विदेशों में भी भारत शान्ति के लिए विख्यात है और लाखों विदेशी शान्ति प्राप्त करने के लिए हमारे देश में आते भी है परन्तु संयुक्त परिवार ही नहीं बल्कि विभक्त परिवार में भी ज़रा जाकर तों देखिये कही पर भी शान्ति नाम की चीज नही मिलेगी वहाँ पर केवल अशांति का ही साम्र्र्ज्य है वेसे भी शान्ति सदेव लड़ाई झगडे के बाद ही आती है क्योंकि सभी ठंडे पड़ जाते हैं ,
जहाँ ब्याह शादियों को गुड्डे गुडिया का खेल समझना शुरू कर दिया है उसमे भी दहेज़ के रूप में कार , बँगला और लाखों रुपया कैश मांगना शुरू कर दिया है परेशानियां झेलते -झेलते जहाँ के लोगों की आँखे जो कभी दरिया हुआ करती थी अब वहाँ सूखे तालाब नजर आते है ,जहाँ के लोग जीवनयापन करने के लिए म्रत्यु तुलया कष्ट झेल रहे हैं और सबके चेहरों पर मुर्दानगी छाई है ,जहाँ का सम्पूर्ण समाज इतना गल साद चुका है की उसमे से मवाद की बदबू आने लगी है ,जहाँ पर तंत्र मंत्रों ने सभी को गुलाम बना दिया है जहाँ के दूरदर्शन ,और समाचार पत्रों मेंजादू टोन टोटके वाले और भविष्य बताने वालों के ही फोटो नजर आते हैं जिनको अपना भविष्य पता नही है वो पूरे भारत वर्ष और वहाँ के लोगों का भविष्य लिखते हैं ,जहाँ पर ऊंच नीच ,छोटा-बड़ा ,धनि निर्धन सभी भेदभाव के झंडे के चिन्ह हैं ,जहाँ पर चापलूसी ने प्रथम स्थान पा लिया है और चुगली ने दिव्तीय और दलाली ने तिर्तीय ,
जहाँ की सरकार ने इतने जजिया कर लगा दिए हैं की यदि ओरंगजेब भी आकर देख ले तों वो भी तौबा कर ले यदि आज वो जिंदा होता तों स्वयम को पागल कहता और कहता की जनता ने उसे तों मुफ्त में ही बदनाम किया है और यदि हिंदू कोम पर जुल्म की बात ही ले लो तों शायद आज के समय में हिन्दुओं पर ज्यादा जुल्म हो रहे है आज उनकी बात तों सुनी ही नहीं जाती ,
जहाँ की सभी दुकानों पर गाय का दूध प्रयोग होता है और भैंसे अपना दूध ख़ुद पी जाती हैं ,जहाँ के सरकारी संस्थानों में रिश्वत ना देने के बोर्ड लगे होते हैं इसलिए वहाँ पर शायद रिश्वत ली ही नही जाती वैसे बिना रिश्वत दिए कोई भी काम हो ही नहीं सकता जहाँ के सरकारी अफसरों के घर छपे पड़ने पर करोड़ों रूपये आमदनी से ज्यादा निकलते है ,
जहाँ पर स्त्री का सावित्री होना जरूरी हैं चाहे आदमी कहीं भी मुंह मारता घूमें ,जहाँ के लोगों की गतिविधियाँ देखकर ती हिजडे भी शर्म से पानी -पानी हो जाते हैं ,जहाँ पर आदमी तब तक कुछ नही करते जब तक ओरतें उनको चुडिया पहनने को नहीं कहती
जहाँ के नेतृत्व करने वाले फिल्मों में अपनी दुर्दशा देख कर नहीं बदलते ,जहाँ की साहित्य्कारिता असभ्य ,अनपद लोगों की बपोती बनकर रह गई है जहाँ पर कला भांडो का प्रदर्शन ही सब कुछ है और उनको ही साहित्य पुरस्कार और पदं श्री जैसे पुरस्कारों से नवाजा जाता है ,जहाँ की मान मर्यादाए अपने पूर्वजों की कहानिया सुनकर या सुनाकर दम तोड़ रही है ,जहा पर भगवान् भी उन्ही लोगों को ५६करोद की चौथाई बख्श रहा है जो की महा झूठे ,गंदे चरित्रहीन ध्र्ष्ट और पापी पुरूष हैं