Tuesday, August 10, 2010

कहावतें भी गलत होती हैं

कहावत है कि यदि माँ , डायन भी हो तो वो अपनों को नहीं खाती
यद्यपि मेरा माँ डायन नहीं है ,प़र फिर भी मुझे खा गई ,

कहावत है कि ,यदि अपने मारते भी हैं तो छाँव में ही डालते हैं ,
प़र मेरों ने मुझे मारकर जेल में पहुंचवा दिया जहां प़र छाँव ही छाँव है ,

कहावत है कि ,बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से खाय ,
मैंने वास्तव में बबूल के पेड़ ही बोये थे फिर आम कैसे खाता ,

कहावत है कि जब पाप का घडा भरने प़र ही फूटता है ,
प़र मैंने किसी पापी काघड़ा फूटते नहीं देखा ,,,,,

Monday, August 9, 2010

कटाक्ष नेता जी प़र

एक गाँव में एक नेताजी रहते थे किन्ही कारणों से उनकी शादी ना हो सकी तो उनको लगा कि ये गाँव वाले उनसे दुखी रहते है शायद इन लोगों ने ही उनकी शादी ना होने दी होगी ,जब उन्होंने देखा कि उनकी शादी कोई करने आता ही नहीं ,तो उन्होंने भी एक दिन कसम खा ली कि अब वो उस गाँव में किसी भी लड़के की शादी नहीं होने देंगे ,अब उन्होंने गाँव के उन लडको प़र निगाह रखनी शुरू कर दी जिनकी शादी नहीं हुई थी ,और जो भी कोई उनकी शादी करने के लिए आता तो वो खुद ही उनके घर पहुँच जाते ,और उन्हीं का खाते पीते और मौका लगते ही लड़की वालों के कान में कह देते ही लड़का बीमार रहता या लफंगा है अथवा कोई बड़ी बिमारी है ,इतने लांछन लगा देते की लड़की वाले उलटे पैर ही लौट जाते और शादी की बात भी नहीं करते इसी तरह उस गाँव में बहुत लड़के क्वारे ही रह गए ,वैसे वो सब जानते थे की उनकी शादी ना होने देने में किस का हाथ है इसी लिए सभी उससे खफा रहते थे ,कुछ दिन बाद पता चला कि आधा गाँव ही क्वारा रह गया ,इसी प्रकार समय बीतता रहा और एक दिन नेता जी ने चौपाल प़र गाँव वालों कि सभा बुलाई और बोले देखो भाइयो अब मेरा अंतिम समय आने वाला है और पता ना किस दिन दुनिया से चला जाऊं ,तो भाइयो मेने आप लोगो को काफी सताया है क्योंकि किसी के भी लड़के कि शादी ना होने दी ,इसलिए मैंने बहुत बड़ा पाप किया है तो भाइयो मेरी अंतिम इच्छा है कि मैं अपने पापों का प्रायश्चित कर लूं तो भाइयो मेरी अंतिम इच्छा है कि जब मैं मरुँ तो मेरे मुंह में तुम सब्मिलकर एक खूंटा थोक देना ताकि मेरे पापं का प्रायश्चित हो जाए ,बस भाइयो मेरी इस इच्छा को पूरी कर देना ,और एक दिन नेताजी मर गए तो सभी को उनकी अंतिम इच्छा का ध्यान आया तो एक बड़ा सा खूंटा मंगवाया गया और नेता जी के मुंह में अच्छी तरह से थोक दिया ,और फिर माताम्पुर्शी को ले गये ,तभी रास्ते कहीं से पुलिश आ गयी ,तो पुलिश ने देखा कि यार मुर्दे के मुंह में ये क्या गद रहा है तो उन्होंने कहा कि अर्थी कौतारो और ज़रा दिखाओ ,जैसे ही थानेदार ने देखा कि ये तो मुंह में खूंटा गद रहा है तो उसने सोचा कि गाँव वालों ने मिलकर इसको मार दिया है अत; पुलिश सबको पकड़ कर थाणे ले गई और हवालात में दाल दिया तो सारे गाँव वाले बस एक ही बात कर रहे थे थे कि सुसरा जिन्दगी भर परेशान करता रहा और अब मरकर भी जेल में फंसा गया तो भाई ये नेताओं कि कौम ऐसी है कि जीवन भर तो जनता को परेशान करती ही है प़र मरने के बाद भी नहीं छोडती ,तो भाई इनसे तो दूर ही रहना अच्छा है

Monday, August 2, 2010

कटाक्ष

हमारी संसद में आज १० दिन से महंगाई को लेकर आरोप प्रत्यारोप लग रहे है सत्ता में बैठी पार्टी कहती है कि इतनी महंगाई भी नहीं है जितना कि विपक्ष वाले शोर मचा रहे हैं और विपक्ष कहता है कि महंगाई के कारण जनता में त्राहि त्राहि मच रही है ,सभी विपक्षी कह रहे हैं कि प्राधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी को संसद खड़े होकर बताना चाहिए कि देश कि जनता के साथ वो ये सब क्या कर रहे हैं जनता सब्जिओं को तरस रही है ,गेहूं आते दालों के भाव आसमान को छू रहे हैं ,प़र सरकार को चिंता है ही नहीं ,जब सरकार दुखी हो गई तो सभी केबिनेट मंत्री सोनिया जी के पास गए बोले ,अब आप ही बताये कि हम क्या करें ,
तो सोनिया जी बोली ,बताना क्या है प्रणव मुखर्जी को बोलो ,वो संभाले विपक्ष को ,सभी मिलकर प्रणव जी के पास गए तो वो बोले कि चलो मैं कल बोलूंगा ,अगले दिन जैसे ही शोर मचा ,महंगाई का ,प्रणव जी खड़े होकर बोले ,भाइयो कहाँ है महंगाई ,मुझे तो सबकुछ सस्ता ही लगता है मई जब भी संसद के केंटिन में खाने जाता हूँ तो बिरयानी कि प्लेट मात्र ५ रुपया में मिल जाती है और मछली के साथ १० रुपया में ,और पेट भर जाता है और आप लोग भी मुर्ग मुसल्लम के साथ २० रूपये में थाली लेकर खाते हो ,५० पैसे में रोटी मिलती है ,औरकिसी भी चीज कि सब्जी ,दाल ले लो सब १० रुपया प्लेट मिलती है ,\
सब मिलकर बोले हम संसद के केन्टीन कि बात नहीं कर रहे ,हम तो बाहर कि बात कर रहे हैं ,अब ये तुम सब में बाहर जाता कौन है सब के सब तो दिल्ली में पड़े रहते हो ,बाहर तो हमारे राहुल जी जाते हैं प़र उन्होंने तो कभी भी ना कहा कि बाहर महंगाई है ,वो तो कहते हैं जनता जबरदस्ती फ्री में खाना खिलाती उन्हें ,अब ज़रा सोचो अगर महंगाई हो तो कोई क्यों किसी को फ्री में भोजन कराएगा
मैं सब जानता हूँ आप जो महंगाई ,महंगाई चिल्ला रहे हो उसका जनता से कुछ लेना देना नहीं है ,वो तो आप लोग जनता कि गाडी कमाई में से अपनी तनखा ५ गुनी कराने के लिए कर रहे हो अब बताओ क्या महंगाई बाहर ५ गुनी बढ़ गई है जो आप लोग अपनी तन्खाएं १६००० से ८०००१ करानी चाहते हो ,भाई हिन्दुस्तान कि जनता सब जानती है वो सब देख रही है ,इसे कहते हैं अपनी दाढ़ी में घस्सा लगाना

Wednesday, July 28, 2010

कटाक्ष

अभी कुछ दिन पहले गाँव से कुछ लोग आ गए और मुझसे बोले भैया हमें सोनिया जी से मिलवा दो ,मैंने कहा ,सोनिया जी से मिलकर क्या करोगे ,दरअसल बेटा प्रधानमंत्री योजना के अंतर्गत गरीबी रेखा से नीचे वालों को एक एक मकान मिल रहा है ,हमने सोचा चलो हम भी कोशिश करके देख लेते हैं ,शायद हमें भी एक मकान मिल जाए ,
प़र ताऊ प्रधानमंत्री तो मनमोहन सिंघजी हैं फिर आप सोनिया जी से मिलना क्यों चाहते हो ,
अरे बेटा तू तो दिल्ली में रहता है फिर भी तुझे ये पता नहीं है कि हमारे देश का प्राधानमंत्री कौन है अरे हर गाँव का बच्चा जानता है कि हमारे देश कि पी,एम् श्रीमती सोनिया गांधी जी हैं ,
अरे ताऊ जी देश के पी, एम् तो मनमोहन सिंह जी हैं ,
अरे छोरे चल तू हमको पागल मत बना ,अगर मिलवाना है तो मिलवा दे नहीं तो हम तो जा रहे है वापस अपने गाँव ,यो कल का छोकरा २,या ४ किताब क्या पढ़ लिया ,बस समझने लगा कि बस देश कि खबर यो ही जाने है
ताऊ किताबों में भी मनमोहन सिंह जी का ही नाम लिखा है ,अच्छा तुम एक बात बताओ ताऊ ,यदि प्रधानमंत्री सोनिया गांधी जी हैं तो फिर मनमोहन सिंह जी क्या हैं ?
होगा कोई जी हजूरी करने वाला ,चमचागिरी करने वाला ,या रिमोट से चलने वाला रोबोट ,प़र भाई हम तो यो जाने है कि देश कि पी ,एम् सोनिया जी ही हैं

Tuesday, July 27, 2010

कटाक्ष

अभी कुछ दिनों पहले मैं अपने गाँव गया ,दरअसल उनदिनों गेंहू के लांक ( गेहूं और बाल एक साथ को )उन दोनों को अलग करने का काम यानी के कनक अलग ,और भूसा अलग करने का काम जोरों प़र था क्योंकि बारिस आने वाली थी ,इसलिए जल्दी से जल्दी गेंहू निकालना था ,ताकि दोनों चीजे खराब ना हों ,तो जंगल में घूमता हुआ उधर निकल गया जहां प़र ये सब हो रहा था ,मैंने देखा ,कि हमारे गाँव के प्रधान जी अपने लांक प़र अपने दो बहुत बूढ़े बैलों से दायें चला रहे थे और बैल भी इतने बूढ़े थे कि उनपर चला भी नहीं जा रहा था ,तो उसे देखकर मैंने प्रधान जी से कहा कि ताऊ ,बर्शात सिर प़र है और तुम इन बैलों के साहार कैसे गेंहू निकाल पाओगे ,किसी से ट्रेक्टर वगेरा ही ले लेते तो ज्यादा अच्छा था ,अरे ऐसे में ट्रेक्टर वाला मेरे गेंहूँ निकालेगा या अपने ,फिर ऐसी बात थी तो बैल ही तगड़े ,जवान ,तन्दुरुस्त ही ले लेते काम तो हो जाता ,ऐसी बात नहीं है भाई ,बैल तो मेरे घर में भी चार चार खड़े हैं प़र उनके बसकी गेंहूँ निकालना ना है ,क्यों ताऊ ,देख बेटा उन जवान बैलों प़र क्या रखा है जो इन बूढ़े बैलों प़र है ,तो मैं बोला ताऊ चला तो इनपर जा नहीं रहा ये गेंहूँ क्या निकालेंगे ,अरे ना बेटा ऐसा मत बोल ,इन बैलों प़र जवानी भले ही ना हो प़र तजुर्बा (एक्स्पिरिएन्स ) तो है ,अरे ताऊ जब शरीर में जान ही नहीं है तो तजुर्बा क्या करेगा ,अरे बेटा तू तो भोला है ,ज़रा सोच के जब दो बूढ़े -------------पूरे हिन्दुस्तान को चला रहे है ,क्या उनके शरीर में जान है ,या हिन्दुस्तान में जवानो कि कोई कमी है ,प़र फिर भी तजुर्बा तो है ,तो भाई इन बैलों के पास भी तजुर्बा है ,आई बात समझ में , आ गई ताऊ ,अच्छी तरह आ गई ,कि हमारे देश में रास्त्रपति और प्रधानमंत्री इतनी उम्र के इसीलिए है कि उनके पास तजुर्बा है

Tuesday, March 9, 2010

खराब और अच्छे वक्त की पहचान

एक व्यापारी का दिवाला निकल गया ,अब उसके पास बिजिनेस करने के लिए जमा पूँजी भी नहीं बची ,कुछ दिन तो वो चुपचाप बेठा रहा प़रबिना कमाए घर खर्च भी कैसे चले अत; उसने अपने एक दोस्त दुकानदार से कुछ रुपया मांगने के लिए उसकी दूकान प़र पहुँच गया और अपनी बात बताकर रुपया उधार माँगा ,उस दोस्त का काम था मुर्गी मुर्गे चूजे ,बेचने का ,अत; उसने दो मुर्गी के चूजी दोस्त को देकर कहा की इन को अपने घर ले जाओ और इनको अच्छा दाना पानी खिलाना मर ना जाएँ ,और बोला की १ माह बाद आ जाना तब देखूंगा वो १ माह बाद फिर लोन लेने पहुँच गया तो उसने पूछा की तुम २ चूजे ले गये थे उनका क्या हुआ ,वो बोला भाई वो तो मर गए ,अच्छा ये लो २ चूजे और ले जाओ और १ माह बाद आजाना ,इसी प्रकार १ वर्ष बीत गया ,चूजे हर बार मरते रहे और वो लोन लेने आता रहा प़र वो दोस्त भी हर बार २ चूजे दे देता ,अब की बार जब वो लोन लेने आया तो उसने पूछा २ चूजों का क्या हुआ तो वो बोला की इस बार तो वो बहुत स्वास्थ्य हैं और काफी बड़े भी हो गए हैं ,तो उसने पूछा की कितने पैसे चाहिए उसने कहा ५००० हजार तो उसने उसको १०००० रुपया दे दिया ,जब वो चला गया तो लाला का नौकर बोला लाला जी पहले तो तुम उसको २ चूजे देकर तारका देते थे प़र आज ऐसा क्या हुआ की उसके ५००० मांगने प़र भी तुमने उसको दस हजार दे दिए ,तो लाला बोला पहले जो चूजे वो जाता था और वो मर जाते थे प़र इस बार के चूजे मरे नहीं बल्कि स्वस्थ है ,तो भैया अब उसका वक्त बदल गया है और अब उसका बिजनेस चल निकलेगा और मेरा पैसा भी नहीं डूबेगा और यदि ये ही पैसा पहले दे देता तो ये भी डूब जाता और साथ में मैं भी ,
नौकर बोला की अब आई समझ में बात

Friday, March 5, 2010

एक गीदड़ की फितरत

एक दिन जंगल में एक सियार खाने की तलाश में घूम रहा था ,उसे एक स्थान प़र एक हाथी मरा हुआ मिल गया था ,फिर क्या था उसकी तो लाटरी निकल आई ,उसने उस हाथी के ऊपर बैठ कर आराम से उसे खाना शुरू कर दिया तभी ,कहीं से एक शेरनी घूमती आ गयी तो उसने देखा कि इतने बड़े जानवर को एक छोटा सा जानवर खा रहा है तो उसने सोचा कि संभवत: शिकार करके ही खा रहा होगा ,इसका मतलब ये छोटा सा जानवर बहुत ताकतवर होगा क्यों ना इससे शादी कर ली जाए ,तो शेरनी ने उससे पूछा अरे भाई क्या कर रहे हो ,तो उसने कहा कि दीख नहीं रहा ,हाथी का शिकार करके खा रहा हूँ ,शेरनी ने कहा वाह क्या बात है,अरे भाई अपना पेट भरने के लिए तो कोई छोटा मोटा शिकार ही कर लेते इतने बड़े कि क्या जरुरत थी ,सियार ने कहा कि मैं छोटे मोटे जानवरों का शिकार नहीं करता वैसे भी हमारे खानदान कि आदत है कि हम बड़े शिकार ही करते हैं ,फिर इस जंगल में मैं कोई अकेला तो हूँ नहीं यहाँ प़र और भी बहुत से जानवर रहते हैं वो भी मेरे साहार अपना पेट भर लेंगे ,क्यों ठीक है ना ,शेरनी बोली अच्छा तो क्या तुम मुझसे शादी करोगे ,हाँ हाँ क्यों नहीं करेंगे ,सियार ने कहा ,तो शेरनी ने पूछा अच्छा एक बात बताओ आपकी जाती बिरादरी क्या है ऐसा मैं इस लिए पूछ रही हूँ कि मैंने अब से पहले आप जैसा ताकतवर जानवर इस जंगल में नहीं देखा ,सियार बोला कि बस ये समझ लो कि इस जंगल के हम ही राजा हूँ ,
अब इन दोनों कि शादी कि बात पक्की हो गयी तो दोनों साथ साथ चलने लगे ,चलते चलते रास्ते में एक गाँव पडा तो जब वहाँ कुत्तों ने देखा कि शेरनी के साथ साथ गीदड़ जा रहा है ,थोड़ा सा कुत्ते भयभीत तो हुए परन्तु मौका मिलते ही उन्होंने गीदड़ को झंझोड़ना शुरू कर दिया यानी के चक मारने लगे तो शेरनी प़र रुका नहीं गया तो उसने आँखे निकाल कर कुत्तों को देखा तो वो भाग गए ,जब वो चले गए तो सियार महाराज बोले कि तुमने उनको घूरा क्यों ,वो सभी मेरे दोस्त थे और मुझसे कह रहे थे यार शादी करके लाये हो तो कोई पार्टी वारती हो जाए ,अब वो सब बुरा मानेगे ,देखो आगे ऐसा मत करना ,शेरनी ने कहा ठीक है
चलते चलते थोड़ा आगे गए तो रास्ते में एक नदी पदगई जिसको पार करना था तो शेरनी तो आराम से निकल गयी परन्तु सियार जी पानी के अन्दर डूबने लगे तो शेरनी ने सोचा कि पानी का बहाव तेज है कहीं ये डूब ही ना जाए
इसलिए उसने गर्दन से पकड़कर बाहर निकाल दिया तो सियार जी फिर नाराज हो गए ,बोले तुम ओर्तों में ये ही तो कमी है कि आदमी के कामों में दखल अन्दाजी किये बगैर बाज नहीं आती अब देखो मैं नदी में अपने उत्तरों पित्तरों के लिए गोते लगा रहा था तो तुमने मुझे गर्दन से पकड़ कर बाहर निकाल लिया अब यदि वो सब नाराज हो गए तो मेरा तो बड़ा गर्क हो जाएगा ,आइन्दा ऐसा मत करना ख़याल रखना वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा ,शेरनी ने कहा कि ठीक है
थोड़ा सा और आगे चले तो रास्ते में एक गन्ने का खेत आ गया और गन्ना सियार कि सबसे बड़ी कमजोरी है क्योंकि वो गन्ने को खाने सबसे ज्यादा पसंद करता है अब वो इतना खुश हुआ कि भूल गया कि वो शेरनी से शादी करके ला रहा है और उसने हट्टी हूँ ,हट्टी हू करनी शुरू कर दी फिर तो शेरनी के कान खड़े हो गए और वो जान गयी कि ये तो सियार है ,उसने उसी समय उसे चीर फाड़ कर फैंक दिया ,तो भाइयो सोचो आखिर चालाकी कब तक बचा सकती है ,

Wednesday, February 24, 2010

एक सियार की कहानी (कटाक्ष )

एक जंगल में एक सियार रहता था कहते है की सियार भी लोमड़ी से कम चालाक नहीं होता अचानक उसे एक दिन सूजा की यार जंगल में इतने जानवर रहते है क्यों ना इनका नेता बना जाए ,ये तो सब बुद्धू हैं किसी को ताकत का अहंकार है तो किसी को अपने लम्बे चौड़े शरीर का की अपनी लम्बी छलांग ,यानी के सभी अपनी अपनी मस्ती में मस्त है फिर क्यों ना इनका इस्तेमाल कर ,बेवक़ूफ़ बनाकर अपने बढिया kहाने पीने और सत्ता करने का मजा ले अब उसके दिमांग में आया की राजा या नेता बन्ना है तो सिंहासन तो होना चाहिए ,उसके लिए वो कहीं से हड्डियां उठा लाया और कहीं से गोबर ,और कहीं से टूटे हुए जूते ,सबसे पहले उसने हड्डीयौं का एक ऊंचा सा चबूतरा बनाया और उसको गोबर से लीप लिया और अपने कानो में वो फटे जूते पहिन लिए ,और उसके ऊपर बैठ गया और जोर जोर से नेताओं की भाँती आवाज लगाने लगा भाइयो सब आज एकत्रित हो जाओ नेता जी और उनकी सरकार बनायी जायेगी ,जंगल में सभी जानवरों में कानाफूसी होने लगी बोले यार चलो देखते हैं वहाँ क्या होगा ,सब एकत्रित
होने लगे सब चुपचाप बैठ गए तो वो सियार बोला ,देखो भाइयो सबसे पहले तो जो में बोलू तुम भी वोही बोलना बोलो चांदी का तेरा चबूतरा ,जैसे सोने लिपा होए ,कानो में दो मुन्द्रे जैसे राजा बेठा होए ,सबके कान खड़े हो गए भाई यो तो राजा बन्ने की सोच रहा है फिर सभी बोल पड़े और इसका मतलब था की उनसब ने स्वीकार कर लिया की हमारा राजा वो है प़र उनमे से एक जानवर ना बोला तो सियार की नजर तो उसी पे थी सो उसने पूछा भाई तू क्योँ ना बोला तो वो बोला सुन रे भाई मुझे तू ऐसा नहीं लग रहा जैसा की तू कहलवा रहा है ,सियार बोला की फिर तू बता में कैसा लग रहा हूँ ,तो वो बोला सुन तू राजा वाजा कोई नहीं है ,सुन हड्डीयौं का तेरा चबूतरा ,जैसा गोबर लीपा होए ,कानों में दो जूतरे जैसे गीदड़ बेठा होए ,इतना कहना था की वो खुद ही सिंहासन से उतर कर भाग गया,तो भाई अब हिस्साब आप खुद लगाना की सार क्या है





Monday, February 1, 2010

आज मेरा (के.पी चौहान )का ५९ वा जनम दिवस

भाइयो वास्तविकता ये है कि मैं स्वयं नहीं जानता कि मेरा वास्तविक जनम दिवस कौन सा है और ये जो १.२.१९५१ जनम तारीख है ये तो जब मै स्कूल पहली बार गया था तो तब मेरे पिताजी ने अंदाजे से ही लिखवा दी होगी या जो मुंशी जी ने बताई होगी लिख दी ,पर अब तो मेरी आयु इसी तारीख से आंकी जाती है वैसे मुझे घर वालों ने ये भी बताया था कि मेरी आयु उस वक्त कम थी तो १ वर्ष ज्यादा लिखवा दी थी तो इस हिसाब से तो मै अभी भी ५८वर्श का गबरू ,जवान मुंडा लड़का हूँ इसलिए आप सभी ब्लोगेर्स से मेरी प्रार्थना है कि आप मुझ को बूढ़ा समझकर कर संपर्क करने मै सकुचाये नहीं ,मै अभी भी अपने आपको ४० वर्ष का युवा ही समझता हूँ वैसे भी जनता के विचारों मै बुडा वो होता है जो स्वयम को असाहय,वर्द्ध या कमजोर समझता हो ,वैसे भी आज के युग मै तो जवानी ही ६० वर्ष के बाद शुरू होती है ,अत:मेरी आप सबसे भी यही प्रार्थना है कि आप चाहे किसी भी आयु के हों ,हमेशा खुद को जवान या छोटा सा बच्चा ही समझे ,जनता चाहे आपको चाचा ,ताऊ ,बाबा ,दादा या परदादा ही क्योँ ना कहे
वैसे मै कुछ बातें मुख्य धारा से अलग हटकर लिख गया ,वास्तविक बात तो थी कि मेरा जनम दिन क्या है तो भाइयो उसके बारे में मेरी माता जी बताती हैं की उस दिन जब तू पैदा हुआ था भादों का महीना था बरसात की रात थी ,हवा जोरों से चल रही थी पर उमस बहुत थी चारों और अन्धेरा ही अन्धेरा था ,उस रात को सूजी का हलवा बनाया था ,तेरे बाबा को मरे हुए १ साल हो गया था देश बहुत पहले आजाद हो गया था ,गाँधी जी को भी मरे हुए सालों बीत चुके थे ,पंडित मुरारी लाल जी ज़िंदा थे ,तेरा भविष्य हमने उन्ही से पूछा था ,हम तो तुझको कृष्णा ही समझ रहे थे क्यूंकि वो भी तो भादौं के महीने में ही बीते थे ,कुंडली हमने कोई बनवाई नहीं थी तो बेटा हम ठीक तारीख कैसे बताएं तो हमने भी कहा की माता जी हम तो अपना काम ऐसे ही चला लेंगे पर आगे नाती पोती पोतों का ख्याल रख लेना हो सके तो जनम कुंडली सुन्द्ली बनवा लेना ,तो बोली बेटा आगे के काम तो तुम जानो या तुम्हारी बहुरिया ,हमारी जान तो छोड़ो ,तो दोस्तों ऐसी है हमारी जनम दिवस की तारीख