Thursday, June 11, 2015

लड़की की शादी ,और दहेज़ की व्यवस्था के कुपरिणाम

क्या कभी आपने या देश की किसी भी सरकार ने सोचा है कि बेटी की शादी करने के लिए दहेज़ एकत्रित करने हेतु बेटी के अभिभावकों को क्या क्या सहन करना और सुन्ना  पड़ता है ,|
अब चाहे गाँव हो या शहर अथवा टाउन सभी जगह एक जैसी दशा है ,
जैसे ही  बेटी  १६ या  १८ की आयु को पार करती है तो माँ बापू को  पता नहीं चलता कि कि उनकी बेटी  शादी लायक हो गई है क्योँकि वो उसे पढ़ा लिखकर उसका कर्रिएर बनाना चाहते है ,वैसे भी उनको अपनी बेटी बच्चा ही नजर आती है जब तक कि वो मेचौर ना हो  जाए और घर बार संभालने के काबिल ना हो जाए ,या अभी उनके पास यथायोग्य धन न्नहीं होता  दहेज़  देने के लिए क्योँकि अभी तो वो पढ़ाई लिखाई करने में ही काफी धन लगा चुके होते हैं ,परन्तु मजे कि बात ये है कि आपके अड़ोसी पड़ौसियों और रिश्तेदारों  पहले पता चल जाता हैं कि उसकी बेटी युवा हो गई है ,और फिर वो अभिभावकों को टॉर्चेर करना भी शुरू कर देते हैं ,और ऐसे भोले बनकर कहते हैं ,भाई  साहब आपकी बेटी शादी लायक  हो गयी है कब कर रहे हो ,जैसे  कि पूरे दहेज देने का इंतजाम उन्होंने पहले ही  कर रखा हो और जब शादी ंहोगी तो 1000 खाकर टिकाएंगे १०१ रुपया ,,
  तो भाई इस  प्रकार कि बातों से तंग आकर बेटी के  अभिभावकों को क्या क्या करना  पड़ता है देखिये और कैसे कैसे परिणाम भोगने पड़ते हैं मात्र दहेज़ के कारण |
सबसे पहले तो जिस किसी भी व्यक्ति के पास बेटी कि शादी में दहेज़ देने के लिए पैसे कि कमी होती है तो मात्र इसी कारण से पुत्री कि आयु और जल्दी जल्दी बढ़ने लगती है जिसे देख देख और सोच सोचकर के उसके अभिभावक रात दिन चिन्तयुक्त होकर  प्रितिदिन और प्रितिरात  मरते रहते हैं |
दूसरा कारण कभी कभी पैसे कि तंगी के कारण उनको अपनी पुत्री कि शादी किसी ऐसे व्यक्ति से करनी पड़ती है जो कि किसी भी तरह से उसके उपयुक्त नहीं है जिसके कारण भी उनका मारना जीना प्रितिदिन चलता ही रहता है |आ
यदि ऐसा नहीं करते हैं तो समाज में तिरस्करित जीवन जीते हैं |
यदि कोई सरकारी नौकर है ऊर्फ उसके पास सही जुगाड़ पैसे का नहीं है तो वो किसी भी तरह धन कमाकर पुत्री कि शादी जल्द से जल्द करना चाहता है जिसके लिए उसे रिश्वत आदि लेकर भ्र्ष्टाचार करना पड़ता है ,यदि नहीं पकड़ा गया तो वाह वाह ,और पकड़ा गया गया तो जेल कि हवा खा ,शादी शुदी गई भाड़ में |
यदि व्यक्ति व्यापारी है और उसका व्यापार ठीक नहीं चल रहा है और पैसा नहीं है और इज्जतदार भी है तो पैसा मांगे किस्से ,और यदि पैसा माँगा तो इज्जत गई भाड़ में ,तो वो मजबूरी में दिवाला आदि निकालेगा या फिर आत्महत्या ही करेगा ,या फिर दूकान मकान बेचेगा ,उस वाली बात होगी कि धोबी का कुत्ता ना घर का ना घाट का ,अब और करे भी तो क्या |
और यदि पुत्री का बापू किसान है और आय को मुख्य स्रोत नहीं है तो बेचारा क्या नहायेगा और क्या निचोड़ेगा ,या तो साहूकार से ८ या १०% पर पैसा लाएगा और चूका नहीं पायेगा तो बेटी कि शादी तो हो जायेगी परन्तु वो बंधुआ बन जाएगा ,या फिर बैल भैंस कटिया ,खेत खलहान कुछ भी बेचेगा तो भी गई भैंस पानी में ,फिर उससे अच्छा है कि आत्महत्या ही करे |
और यदि किसी मजदूर की  बेटी है तो दिल पर पत्थर रख कर  किसी भी काले पीले ,बेवड़े,या नशेड़ी से शादी शुदी करके घर में चुप चाप बैठ जाएगाउसकी अपनी जिंदगी तोमखराब होगी ही साथ में लड़की जिंदगी तो नरक ही बनकर रह जाएगी ,यदिमवोम लड़की  की शादी न करता तो अड़ोसी पडोसी रिश्तेदार जीने ही नहीं देते ना उसको ना उसको ना उसकी बेटी को |
कहने का तातपर्य है कि समाज के डर मात्र से भी कितने ही शरीफ लोग बेटी कि शादी ना करने के कारण समय से पहले ही स्वर्गलोक सिधार जाते हैं ,जिसके कारण पीछे रह चुके और बच्चों या  जो उस पर आश्रित थे उनका जीवन भी खराब और वो फिर अपना पेट भरने हेतु क्राइम करना शुरू कर देते हैं |
और ये सभी बातें ,समाज और सरकार भी भली  भांति जानती है परन्तु शादी विवाह को मात्र REGISTRATION तक नहीं पहुंचती क्योंकि जो सरकार में हैं या बड़े बड़े नेता राजनेता हैं उनके पास तो देश का १५%रुपया है  इसलिए वो चाहे जितना पैसा खर्च कर सकते हैं ,इसलिए ना तो वो मरेंगे और नाहीं उनकी बेटियां आत्महत्या जैसा घिनौना कार्य करेंगे फिर वो परवाह करे भी तो क्योँ |
इसलिए यदि देश को और महिलाशक्ति को बचाना है और अगली पीढ़ी में वीर पढ़े लिखे होनहार युवक और युवतियां पैदा करनी हैं तो दहेज़ रुपी कोढ़ को देश से हटाना ही पडेगा ,वरना तो आगे आने वाला समाज विकृति वाला ही पैदा होगा ,क्योंकि जब बच्चा माँ के गर्भ में होता है और युवती को दहेज़ के लिए प्रताड़ित किया जाता है तो उसका असर गर्भस्थ शिशु पर भी पड़ता है |
मात्र एक शादी ना करने या जोड़तोड़ या क्राइम करके पैसा एकत्रित कर पूर्ण दहेज़ के रूपम में देने से क्राइम का ग्राफ बढ़ता जा रहा है परन्तु सरकार कम कान पर जू नहीं रेंगती |
अत:  हम सभी भारतीय जनता और सरकार को मिलकर दहेज़ रुपी कोढ़ को समाप्त करने हेतु पर्यटन करने चाहिए ,आज नहीं तो कलम सफलता अवश्य मिलेगी
                                                                                         धन्यवाद




























Monday, June 8, 2015

स्त्री का वर्चस्व पुरुष के समक्ष नगण्य क्योँ ?

स्त्री का वर्चस्व २१ वीं शताब्दी में भी पुरुष के समक्ष नगण्य है आखिर क्योँ ?
कोई भी पुरुष गरीब से गरीब और अमीर से अमीर ,बिना दहेज़ के किसी भी लड़की से विवाह करने को तैयार नहीं है क्योँ ?
यदि लड़का इंजीनियर ,I A S या I P S या I R S  है तो उनके रेट भी करोड़ों में तय हैं चाहे लड़की भी इन्हीं रैंक्स की क्योँ ना हो क्योँ ?
बहुत  सारा दहेज़ देने के बावजूद भी लड़की को पैर की जूती समझा जाता है क्योँ ?
दहेज़ लाने के बाद भी ससुराल में उससे नौकरों जैसा व्यवहार होता है  क्योँ ?
उनसे घर  का काम काज भी जानवरों की भाति लिया जाता है क्योँ ?
उनको ससुराल में प्रताड़ित किया जाता है क्योँ ?
आज देश में ९३ % स्त्री आत्महत्या के केस मात्र दहेज़ को लेकर होते हैं क्योँ ?
इस  सबके बावजूद आज तक देश में  दहेज़ रोकने का कानून  तो बना परन्तु उसको असली  जामा नहीं पहनाया गया क्योँ ?
क्योँकि जिन लोगों की सरकार है या जो सरकारी पिट्ठू हैं उनके पास अथाह धन है और वो अपनी बेटियों की शादी में अचूक धन व्यय करते हैं ,उनके लिए गरीब कन्या या स्त्रियों का कोई महत्त्व नहीं है ,
यदि ये ऐसे ही चलता तो वो दिन दूर नहीं है जब की हर घर के बेटी को आत्नहत्या का सामना करना पडेगा क्योँकि आप चाहे कितना ही दहेज़ दे दो परन्तु उन दुर्जनों का पेट नहीं भरता |
कायदे से तो न्याय प्र्णाली के तहत शादी मात्र रजिस्ट्रेशन से हो जानी चाहिए ,फिर देखिये देश कैसे उन्नति करता है
क्योंकि आधी जिंदगी तो व्यकि की चाहे वो व्यापारी हो या किसान अथवा सरकारी नौकर या साधारण व्यक्ति ही क्योँ न हो अपने बच्चों की शादी के लिए धन एकत्रित करने में ही लग जाता है ,फिर वो तरक्की क्या करेगा खाक ,वो सिसकता ही रहता है |