Wednesday, February 24, 2010

एक सियार की कहानी (कटाक्ष )

एक जंगल में एक सियार रहता था कहते है की सियार भी लोमड़ी से कम चालाक नहीं होता अचानक उसे एक दिन सूजा की यार जंगल में इतने जानवर रहते है क्यों ना इनका नेता बना जाए ,ये तो सब बुद्धू हैं किसी को ताकत का अहंकार है तो किसी को अपने लम्बे चौड़े शरीर का की अपनी लम्बी छलांग ,यानी के सभी अपनी अपनी मस्ती में मस्त है फिर क्यों ना इनका इस्तेमाल कर ,बेवक़ूफ़ बनाकर अपने बढिया kहाने पीने और सत्ता करने का मजा ले अब उसके दिमांग में आया की राजा या नेता बन्ना है तो सिंहासन तो होना चाहिए ,उसके लिए वो कहीं से हड्डियां उठा लाया और कहीं से गोबर ,और कहीं से टूटे हुए जूते ,सबसे पहले उसने हड्डीयौं का एक ऊंचा सा चबूतरा बनाया और उसको गोबर से लीप लिया और अपने कानो में वो फटे जूते पहिन लिए ,और उसके ऊपर बैठ गया और जोर जोर से नेताओं की भाँती आवाज लगाने लगा भाइयो सब आज एकत्रित हो जाओ नेता जी और उनकी सरकार बनायी जायेगी ,जंगल में सभी जानवरों में कानाफूसी होने लगी बोले यार चलो देखते हैं वहाँ क्या होगा ,सब एकत्रित
होने लगे सब चुपचाप बैठ गए तो वो सियार बोला ,देखो भाइयो सबसे पहले तो जो में बोलू तुम भी वोही बोलना बोलो चांदी का तेरा चबूतरा ,जैसे सोने लिपा होए ,कानो में दो मुन्द्रे जैसे राजा बेठा होए ,सबके कान खड़े हो गए भाई यो तो राजा बन्ने की सोच रहा है फिर सभी बोल पड़े और इसका मतलब था की उनसब ने स्वीकार कर लिया की हमारा राजा वो है प़र उनमे से एक जानवर ना बोला तो सियार की नजर तो उसी पे थी सो उसने पूछा भाई तू क्योँ ना बोला तो वो बोला सुन रे भाई मुझे तू ऐसा नहीं लग रहा जैसा की तू कहलवा रहा है ,सियार बोला की फिर तू बता में कैसा लग रहा हूँ ,तो वो बोला सुन तू राजा वाजा कोई नहीं है ,सुन हड्डीयौं का तेरा चबूतरा ,जैसा गोबर लीपा होए ,कानों में दो जूतरे जैसे गीदड़ बेठा होए ,इतना कहना था की वो खुद ही सिंहासन से उतर कर भाग गया,तो भाई अब हिस्साब आप खुद लगाना की सार क्या है





Monday, February 1, 2010

आज मेरा (के.पी चौहान )का ५९ वा जनम दिवस

भाइयो वास्तविकता ये है कि मैं स्वयं नहीं जानता कि मेरा वास्तविक जनम दिवस कौन सा है और ये जो १.२.१९५१ जनम तारीख है ये तो जब मै स्कूल पहली बार गया था तो तब मेरे पिताजी ने अंदाजे से ही लिखवा दी होगी या जो मुंशी जी ने बताई होगी लिख दी ,पर अब तो मेरी आयु इसी तारीख से आंकी जाती है वैसे मुझे घर वालों ने ये भी बताया था कि मेरी आयु उस वक्त कम थी तो १ वर्ष ज्यादा लिखवा दी थी तो इस हिसाब से तो मै अभी भी ५८वर्श का गबरू ,जवान मुंडा लड़का हूँ इसलिए आप सभी ब्लोगेर्स से मेरी प्रार्थना है कि आप मुझ को बूढ़ा समझकर कर संपर्क करने मै सकुचाये नहीं ,मै अभी भी अपने आपको ४० वर्ष का युवा ही समझता हूँ वैसे भी जनता के विचारों मै बुडा वो होता है जो स्वयम को असाहय,वर्द्ध या कमजोर समझता हो ,वैसे भी आज के युग मै तो जवानी ही ६० वर्ष के बाद शुरू होती है ,अत:मेरी आप सबसे भी यही प्रार्थना है कि आप चाहे किसी भी आयु के हों ,हमेशा खुद को जवान या छोटा सा बच्चा ही समझे ,जनता चाहे आपको चाचा ,ताऊ ,बाबा ,दादा या परदादा ही क्योँ ना कहे
वैसे मै कुछ बातें मुख्य धारा से अलग हटकर लिख गया ,वास्तविक बात तो थी कि मेरा जनम दिन क्या है तो भाइयो उसके बारे में मेरी माता जी बताती हैं की उस दिन जब तू पैदा हुआ था भादों का महीना था बरसात की रात थी ,हवा जोरों से चल रही थी पर उमस बहुत थी चारों और अन्धेरा ही अन्धेरा था ,उस रात को सूजी का हलवा बनाया था ,तेरे बाबा को मरे हुए १ साल हो गया था देश बहुत पहले आजाद हो गया था ,गाँधी जी को भी मरे हुए सालों बीत चुके थे ,पंडित मुरारी लाल जी ज़िंदा थे ,तेरा भविष्य हमने उन्ही से पूछा था ,हम तो तुझको कृष्णा ही समझ रहे थे क्यूंकि वो भी तो भादौं के महीने में ही बीते थे ,कुंडली हमने कोई बनवाई नहीं थी तो बेटा हम ठीक तारीख कैसे बताएं तो हमने भी कहा की माता जी हम तो अपना काम ऐसे ही चला लेंगे पर आगे नाती पोती पोतों का ख्याल रख लेना हो सके तो जनम कुंडली सुन्द्ली बनवा लेना ,तो बोली बेटा आगे के काम तो तुम जानो या तुम्हारी बहुरिया ,हमारी जान तो छोड़ो ,तो दोस्तों ऐसी है हमारी जनम दिवस की तारीख