Sunday, July 17, 2016

putriyan

हम लोग उसे
माँ, बहिन ,बेटी
देवी एवं लक्ष्मी
ना जाने क्या क्या कहते हैं
पर पत्नी बनाने के नाम पर
दहेज़ के रूप में
अपना मुंह मांगा मूल्य
ठोक  बजाकर
वसूलते हैं

taal talaiya

युग युगन्तरों से
 वर्तमान तक
मेरी महत्ता और महत्त्व
बरकरार है
किसी भी ग्राम के
निर्माण से पूर्व
मेरे नाम  का
मंथन किया जाता था कि
मुझे किस दिशा में
स्थापित करना है
वास्तुनुसार मेरा
उत्तर पूर्व में दिशा में
निर्माण किया जाता था
मेरे निर्माण से पूर्व
यज्ञ ,पूजा हवन
 वरुण देव को
आगमन हेतु
आवाहन किया जाता था
फिर वरुण देव मुझे
अपने रुद्रों से प्लावित कर
बार बार आने का और
प्लावित करने का
भरोसा देकर
गंतव्य को चले जाते हैं

फिर ग्राम देवता भी आकर
मुझे आदेश  देता था और
मेरा  धर्म कर्म सेवा का
उपदेश देता था
कहता था कि
इस ग्राम और संसार में
जितने भी जलचर ,नभचर
मानव और दानव
कीट पतंग पशु जीवित हैं
उनकी उस आवष्यकता को
 जिसके हेतु
भूलोक पर तुमको
स्थान दिया गया है
पूर्ण कर जीवन दान  देना है
और मैं अपने उस कर्तव्य
को निरंतर पूर्ण
करता चला आ रहा हूँ
यदि मैं ग्रीष्म में
 अपना अस्तित्व खो दूँ तो
ना जाने कितने
असाहय ,निरीह  जीव जन्तु
अपने  जीवन से
हाथ धो बैठेंगे
यानि कि असमय ही
 काल कवलित हो जाएंगे
परन्तु मैं अपने कर्तव्यों की
कदापि अवहेलना नहीं करता
और मरते दम  तक
सभी की सेवा शुश्रवा में
 लीन रहता हूँ और
अपने नाम के अनुसार
सदैव साफ़ रहता हूँ और
जो भी मेरे सम्पर्क में आता है
उसे भी साफ़ रखने का
भरसक प्रयत्न करता हूँ
 अब आप ही बताओ कि
मैं मौन धारण  किये हुए
 कौन हूँ ।



Friday, July 15, 2016

bhains

एक दिन में
और मेरे पिता श्री
 घुमते घुमते
पहुँच गए उस पैंठ में
जहाँ उनकी खरीद फरोख्त
प्रत्येक माह के
अंतिम रविवार को
हुआ करती थी
वहां बहुत सुन्दर सुन्दर
काली काली
अपने अभिभावकों या
पालनहारों के साथ
शायद घूमने या
या अपने  रूप स्वरूप का
प्रदर्शन करने अथवा
नया मालिकाना हक़
प्राप्त करने आया करती थी
अचानक पिता श्री को
एक काली कलूटी
नाटी  सुखी हुई सी
पर दिल आ गया
और उन्होंने उसका
नया अभिभावक बन्ने का
खिताब पाकर
अपने साथ लेकर
वापसी को प्रस्थान
कर दिया
जब घरोंदे पर पहुंचे तो
माता ने देखते ही
घर सर पर उठा लिया
और लगी पिता श्री को
लानत मलानत देने
पर उन्होंने भी
अपना सर नीचे को कर
जमीन पर गढ़ा  दिया ,
वो आयु में
मुझसे बहुत छोटी थी
फिर भी पता नहीं क्यों
उस काली पर
मेरा भी दिल आ गया
पता नहीं क्योँ उससे
मुझे अंदरूनी
प्यार सा  हो गया
जहां पर मैं  रात्रि में
शयन करता था तो
उसे भी अपनी मंझी के पास
कुछ दूरी पर बसेरा करने हेतु
सहारा दे दिया
धीरे धीरे
वो युवा होने लगी
उसकी देह भी कुछ कुछ
सुडौल और चिकनी होने लगी
ईश्वर जाने कहाँ से
उसकी चाल में भी लोच आ गया
जब वो चलती थी तो
उसकी चाल हिरणी जैसी
लगती थी
परन्तु उसका छरहरा पन
कुछ अलग ही कहानी कहता था
जब भी वो बाहर आती जाती
तो लोग उसे देखकर
आहें भरने लगे
उसके सौंदर्य की
नयी नयी कहानी
गढ़ने लगे
अब वो पूर्ण युवा हो गई
तो शादी के चर्चे होने लगे
फिर पिताश्री ने उसकी शादी
एक काले भुसण्ड
जो उसी की जाति  का था
करा दी गयी
पर उसे बिदा ना किया
बल्कि उसके पति को ही
घर से बिदा  कर दिया
जब  उसके नौ ,दस माह बाद
एक सुन्दर सा
काला काला सा
बच्चे को जन्म दिया ,
उसको इतना दूध
उतरता था की उसका वो बच्चा
और हमारे बच्चे भी उसके
सहारे पलने लगे
उस बेचारी ने
मेरे परिवार के लिये भी
बहुत से उदगार दिए
आज मैं  और मेरा परिवार
उसके ऋणी हैं
वो हम सभी के हेतु
देवी भरणी  हैं
उसका अहसान
हम कभी भूल नहीं सकते
उसका दूध ही  पीकर
मेरे बच्चे भी
आज हट्टे कट्टे 
नौ जवान हो गए हैं
और अब तो वो भी
भैंस मौसी के
मुरीद हो गए हैं ।


Wednesday, July 13, 2016

chutkula

एक क्षात्र स्कूल रोज आता था पर होम वर्क कभी नहीं करता था ,मास्टर भी उसे कुछ इसलिए नहीं कहता था की कभी तो समझेगा ,पर वो कभी समझा ही नहीं ,
एक दिन मास्टर जी को गुस्सा आ गया तो वो क्षात्र से बोले आज तो तू मुर्गा बन ही जा ,
तो क्षात्र बोला मई मुर्गा नहीं बनूंगा ,चाहे और कुछ भी बनवा लो
मास्टर जी बोले , मुर्गा क्योँ नहीं बनेगा ,
क्षात्र बोला क्योँकि मैं आपकी आदत  जानता हूँ ,
मास्टर जी बोले  क्या बनेगा ,गदा ,घोडा कुत्ता बिलोता ,भैंसा
क्षात्र बोला मैं  तो कुत्ता बनूँगा ,
मास्टर ने पूछा कुत्ता क्योँ   बनेगा और मुर्गा क्योँ नहीं बनेगा ,
क्षात्र बोला की यदि मैं मुर्गा बना तो आप मुझे भूनकर खा जाओगे ,
और यदि मैं कुत्ता बन गया तो तुमको काठकर  भाग जाऊंगा ।
मास्टर बोला ,अबे बड़ा चालक है तू
मास्टर जी आप से ही सीखा है आखिर शिष्य किसका हूँ
जा बेटा शाबाश
सभी बच्चे हँसते हँसते पागल हो गए
बोले आज तो मास्टर जी की बाट लगा दी

Tuesday, July 5, 2016

          असमानता                               
पंचतारा होटलों में जाने वालो
भांति भांति  के व्यंजन खाने वालो
 बून्द बून्द कर कंठ में उतारने वालो
नृत्य संगीत से मन बहलाने वालो
कभी तुमने गरीबों के बच्चों को
झूठी पत्तलें ं में चाटते देखा है ।