Monday, July 14, 2014

इश्क़ का भूत

आशिक़ जंगली कबूतर
मासूक म्याऊँ होती है
शुरू के कुछ दिनों में
खूब धूप छाँव होती है
 इश्क़ का भूत उत्तर जाता है
फिर कांव कांव होती है
फिर तलाक़ फरमान होता है
या आत्महत्या निदान होती है

Wednesday, April 23, 2014

कौन बड़ा भिखारी

चुनाव का समय था एक बड़े नेता जी बड़े लाव लश्कर के साथ अपने चुनाव क्षेत्र में प्रचार करते घूम रहे थे तभी चौक पर बैठा हुआ एक भिखारी दीख गया तो उन्होंने एक सौ का नोट निकाल कर भिखारी के हाथ में पकड़ाया परन्तु उसने लेकर दूर फेंक दिया और बोला ,इतने सारे साथ लेकर चल रहा है और दिखा रहा है मात्र सौ का नोट ,,तो नेता जी बोले अरे बाबा और ले लो ,२ सौ ले लो तभी नेता जी का एक चेला बोला भाई जी इसका तो वोट भी नहीं होगा ,
भिखारी बोला वोट काहे नहीं है देख २० वोट हैं मेरे पास पूरे खानदान के ,खाली भिखारी नहीं हूँ भारत का नागरिक भी हूँ ,
पर भाई में भिखारियों से भीख नहीं लेता
तभी नेता जी बोले तुमने मुझे भिखारी कहा
और क्या कहूँ तुम तो मुझसे भी बड़े भिखारी हो ,फर्क इतना है की मै रोजाना भीख माँगता हूँ और तुम सीजनल हो ,मैं केवल जुबान से भीख माँगता हूँ और तुम लोगों के पैरों में पड  जाते हो ,तरह तरह की मुख मुद्रा बनाते हो ,झूठे प्रलोभन देते हो ,मेरे जैसे गंदे आदमी के साथ बैठकर खाना भी खा लेते हो ,कोई गाली देता है तो सुन भी लेते हो ,तुम्हारे खानदान की धज्जियां उड़ाता है तो हँसते रहते हो ,उनके गंदे गंदे बच्चों को भी गोद में लेकर खिलाने लग जाते हो ,कोई अंडे फेंकता है ,कोई टमाटर फेंकता है कोई स्याही फेंकता है कोई चप्पल और चांटा मरता हैं तो भी kuchh नहीं kahte  ,कोई तो patthar भी fek कर maar detaa है 
ये सब कोई मेरे साथ कभी करता है क्या ,
और फिर भी तुम सारे दिन एक एक वोट मांगते हुए बहेरियों की तरह भागम भाग करते रहते हो और मुझे देखो सुबह को इसी चौराहे पर आकर बैठता हूँ और शाम तक बैठा रहता हूँ ,और फिर छोटा भिखारी होने के बाद जितना कमाता हूँ शाम को पत्नी को दे देता हूँ और हिसाब लगाकर इनकम टैक्स  भी देता हूँ  कोई हेरा फेरी कोई घोटाला नहीं ,
और तुम बड़े भिखारी होने के बावजूद भी तुम्हारा पेट नहीं भरता विधान सभा या संसद में जाने के बाद भी अरबों खरबों के  घोटाले करते रहते हो ,
अब बताओ बड़ा भिखारी कौन तुम या मैं ,इसलिए मैं तुमसे भीख नहीं लूंगा










 

Wednesday, March 5, 2014

एक सत्य घटना

मंथर गति से अपने सम्मुख
जाती हुई किसी भी छाया को देख
एक साधारण मानव भी जो
सवयम रिक्शा दौड़ाता
साइकिल को तीव्र गति से दौड़ाता 
मोटर कार के स्टेयरिंग को घुमाता
कार को ट्रक टक्कर से बचाता
कनखियों से छुप छुप के देखता
मंद मंद खिलखिलाता या मुस्कुराता
हलकी हलकी सीटी बजाता या
मंद मंद स्वर में कुछ कुछ गुनाता
उसके एकदम समीप से निकलता हुआ
कुछ गंदे गंदे  से कमेंट कस्ता हुआ
पीछे मुड़ मुड़ कर  देखता हुआ
नैन सुख प्राप्त करता हुआ
चोरों कि भांति भाग भी जाता
परन्तु फिर थोड़ी सी दूर जाकर
मोटर कार को  साइड में लगाकर 
अपनों बुशर्ट के बटन खोलकर
वृक्ष के नीचे खड़ा हो जात्ता
 पास आई तो देखा वो तो बहना थी
छाया नहीं वो तो नयना थी
वास्तव में ये मात्र एक कहानी नहीं
 दिल फेंक भाई कि सत्य घटना थी
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Wednesday, February 5, 2014

गुलाब का पुष्प

कभी कोई गुलाब के पुष्प को
कोट के बटन पे लगा लेता है
तो कोई उसे  गमले में लगाकर
ड्राइंग रूम  में सजा लेता है ,
तो कोई उसे अपने हाथ से 
 इष्ट के पगों में चढ़ा देता है
या भक्त गुलाब की माला बना
प्रभू की ग्रीवा में पहिना देता है ,
तो कोई गुलाब का अर्क निकाल
अपने  नयनों में लगा लेता है
तो कोई गुल कंद बना खा लेता है
वाट पित्त व्याधि को भगा देता है
पर गुलाब को कोई फर्क नहीं पड़ता
उसका काम मात्र भला करना होता है |