Tuesday, August 10, 2010

कहावतें भी गलत होती हैं

कहावत है कि यदि माँ , डायन भी हो तो वो अपनों को नहीं खाती
यद्यपि मेरा माँ डायन नहीं है ,प़र फिर भी मुझे खा गई ,

कहावत है कि ,यदि अपने मारते भी हैं तो छाँव में ही डालते हैं ,
प़र मेरों ने मुझे मारकर जेल में पहुंचवा दिया जहां प़र छाँव ही छाँव है ,

कहावत है कि ,बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से खाय ,
मैंने वास्तव में बबूल के पेड़ ही बोये थे फिर आम कैसे खाता ,

कहावत है कि जब पाप का घडा भरने प़र ही फूटता है ,
प़र मैंने किसी पापी काघड़ा फूटते नहीं देखा ,,,,,

Monday, August 9, 2010

कटाक्ष नेता जी प़र

एक गाँव में एक नेताजी रहते थे किन्ही कारणों से उनकी शादी ना हो सकी तो उनको लगा कि ये गाँव वाले उनसे दुखी रहते है शायद इन लोगों ने ही उनकी शादी ना होने दी होगी ,जब उन्होंने देखा कि उनकी शादी कोई करने आता ही नहीं ,तो उन्होंने भी एक दिन कसम खा ली कि अब वो उस गाँव में किसी भी लड़के की शादी नहीं होने देंगे ,अब उन्होंने गाँव के उन लडको प़र निगाह रखनी शुरू कर दी जिनकी शादी नहीं हुई थी ,और जो भी कोई उनकी शादी करने के लिए आता तो वो खुद ही उनके घर पहुँच जाते ,और उन्हीं का खाते पीते और मौका लगते ही लड़की वालों के कान में कह देते ही लड़का बीमार रहता या लफंगा है अथवा कोई बड़ी बिमारी है ,इतने लांछन लगा देते की लड़की वाले उलटे पैर ही लौट जाते और शादी की बात भी नहीं करते इसी तरह उस गाँव में बहुत लड़के क्वारे ही रह गए ,वैसे वो सब जानते थे की उनकी शादी ना होने देने में किस का हाथ है इसी लिए सभी उससे खफा रहते थे ,कुछ दिन बाद पता चला कि आधा गाँव ही क्वारा रह गया ,इसी प्रकार समय बीतता रहा और एक दिन नेता जी ने चौपाल प़र गाँव वालों कि सभा बुलाई और बोले देखो भाइयो अब मेरा अंतिम समय आने वाला है और पता ना किस दिन दुनिया से चला जाऊं ,तो भाइयो मेने आप लोगो को काफी सताया है क्योंकि किसी के भी लड़के कि शादी ना होने दी ,इसलिए मैंने बहुत बड़ा पाप किया है तो भाइयो मेरी अंतिम इच्छा है कि मैं अपने पापों का प्रायश्चित कर लूं तो भाइयो मेरी अंतिम इच्छा है कि जब मैं मरुँ तो मेरे मुंह में तुम सब्मिलकर एक खूंटा थोक देना ताकि मेरे पापं का प्रायश्चित हो जाए ,बस भाइयो मेरी इस इच्छा को पूरी कर देना ,और एक दिन नेताजी मर गए तो सभी को उनकी अंतिम इच्छा का ध्यान आया तो एक बड़ा सा खूंटा मंगवाया गया और नेता जी के मुंह में अच्छी तरह से थोक दिया ,और फिर माताम्पुर्शी को ले गये ,तभी रास्ते कहीं से पुलिश आ गयी ,तो पुलिश ने देखा कि यार मुर्दे के मुंह में ये क्या गद रहा है तो उन्होंने कहा कि अर्थी कौतारो और ज़रा दिखाओ ,जैसे ही थानेदार ने देखा कि ये तो मुंह में खूंटा गद रहा है तो उसने सोचा कि गाँव वालों ने मिलकर इसको मार दिया है अत; पुलिश सबको पकड़ कर थाणे ले गई और हवालात में दाल दिया तो सारे गाँव वाले बस एक ही बात कर रहे थे थे कि सुसरा जिन्दगी भर परेशान करता रहा और अब मरकर भी जेल में फंसा गया तो भाई ये नेताओं कि कौम ऐसी है कि जीवन भर तो जनता को परेशान करती ही है प़र मरने के बाद भी नहीं छोडती ,तो भाई इनसे तो दूर ही रहना अच्छा है

Monday, August 2, 2010

कटाक्ष

हमारी संसद में आज १० दिन से महंगाई को लेकर आरोप प्रत्यारोप लग रहे है सत्ता में बैठी पार्टी कहती है कि इतनी महंगाई भी नहीं है जितना कि विपक्ष वाले शोर मचा रहे हैं और विपक्ष कहता है कि महंगाई के कारण जनता में त्राहि त्राहि मच रही है ,सभी विपक्षी कह रहे हैं कि प्राधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी को संसद खड़े होकर बताना चाहिए कि देश कि जनता के साथ वो ये सब क्या कर रहे हैं जनता सब्जिओं को तरस रही है ,गेहूं आते दालों के भाव आसमान को छू रहे हैं ,प़र सरकार को चिंता है ही नहीं ,जब सरकार दुखी हो गई तो सभी केबिनेट मंत्री सोनिया जी के पास गए बोले ,अब आप ही बताये कि हम क्या करें ,
तो सोनिया जी बोली ,बताना क्या है प्रणव मुखर्जी को बोलो ,वो संभाले विपक्ष को ,सभी मिलकर प्रणव जी के पास गए तो वो बोले कि चलो मैं कल बोलूंगा ,अगले दिन जैसे ही शोर मचा ,महंगाई का ,प्रणव जी खड़े होकर बोले ,भाइयो कहाँ है महंगाई ,मुझे तो सबकुछ सस्ता ही लगता है मई जब भी संसद के केंटिन में खाने जाता हूँ तो बिरयानी कि प्लेट मात्र ५ रुपया में मिल जाती है और मछली के साथ १० रुपया में ,और पेट भर जाता है और आप लोग भी मुर्ग मुसल्लम के साथ २० रूपये में थाली लेकर खाते हो ,५० पैसे में रोटी मिलती है ,औरकिसी भी चीज कि सब्जी ,दाल ले लो सब १० रुपया प्लेट मिलती है ,\
सब मिलकर बोले हम संसद के केन्टीन कि बात नहीं कर रहे ,हम तो बाहर कि बात कर रहे हैं ,अब ये तुम सब में बाहर जाता कौन है सब के सब तो दिल्ली में पड़े रहते हो ,बाहर तो हमारे राहुल जी जाते हैं प़र उन्होंने तो कभी भी ना कहा कि बाहर महंगाई है ,वो तो कहते हैं जनता जबरदस्ती फ्री में खाना खिलाती उन्हें ,अब ज़रा सोचो अगर महंगाई हो तो कोई क्यों किसी को फ्री में भोजन कराएगा
मैं सब जानता हूँ आप जो महंगाई ,महंगाई चिल्ला रहे हो उसका जनता से कुछ लेना देना नहीं है ,वो तो आप लोग जनता कि गाडी कमाई में से अपनी तनखा ५ गुनी कराने के लिए कर रहे हो अब बताओ क्या महंगाई बाहर ५ गुनी बढ़ गई है जो आप लोग अपनी तन्खाएं १६००० से ८०००१ करानी चाहते हो ,भाई हिन्दुस्तान कि जनता सब जानती है वो सब देख रही है ,इसे कहते हैं अपनी दाढ़ी में घस्सा लगाना