Friday, July 15, 2016

bhains

एक दिन में
और मेरे पिता श्री
 घुमते घुमते
पहुँच गए उस पैंठ में
जहाँ उनकी खरीद फरोख्त
प्रत्येक माह के
अंतिम रविवार को
हुआ करती थी
वहां बहुत सुन्दर सुन्दर
काली काली
अपने अभिभावकों या
पालनहारों के साथ
शायद घूमने या
या अपने  रूप स्वरूप का
प्रदर्शन करने अथवा
नया मालिकाना हक़
प्राप्त करने आया करती थी
अचानक पिता श्री को
एक काली कलूटी
नाटी  सुखी हुई सी
पर दिल आ गया
और उन्होंने उसका
नया अभिभावक बन्ने का
खिताब पाकर
अपने साथ लेकर
वापसी को प्रस्थान
कर दिया
जब घरोंदे पर पहुंचे तो
माता ने देखते ही
घर सर पर उठा लिया
और लगी पिता श्री को
लानत मलानत देने
पर उन्होंने भी
अपना सर नीचे को कर
जमीन पर गढ़ा  दिया ,
वो आयु में
मुझसे बहुत छोटी थी
फिर भी पता नहीं क्यों
उस काली पर
मेरा भी दिल आ गया
पता नहीं क्योँ उससे
मुझे अंदरूनी
प्यार सा  हो गया
जहां पर मैं  रात्रि में
शयन करता था तो
उसे भी अपनी मंझी के पास
कुछ दूरी पर बसेरा करने हेतु
सहारा दे दिया
धीरे धीरे
वो युवा होने लगी
उसकी देह भी कुछ कुछ
सुडौल और चिकनी होने लगी
ईश्वर जाने कहाँ से
उसकी चाल में भी लोच आ गया
जब वो चलती थी तो
उसकी चाल हिरणी जैसी
लगती थी
परन्तु उसका छरहरा पन
कुछ अलग ही कहानी कहता था
जब भी वो बाहर आती जाती
तो लोग उसे देखकर
आहें भरने लगे
उसके सौंदर्य की
नयी नयी कहानी
गढ़ने लगे
अब वो पूर्ण युवा हो गई
तो शादी के चर्चे होने लगे
फिर पिताश्री ने उसकी शादी
एक काले भुसण्ड
जो उसी की जाति  का था
करा दी गयी
पर उसे बिदा ना किया
बल्कि उसके पति को ही
घर से बिदा  कर दिया
जब  उसके नौ ,दस माह बाद
एक सुन्दर सा
काला काला सा
बच्चे को जन्म दिया ,
उसको इतना दूध
उतरता था की उसका वो बच्चा
और हमारे बच्चे भी उसके
सहारे पलने लगे
उस बेचारी ने
मेरे परिवार के लिये भी
बहुत से उदगार दिए
आज मैं  और मेरा परिवार
उसके ऋणी हैं
वो हम सभी के हेतु
देवी भरणी  हैं
उसका अहसान
हम कभी भूल नहीं सकते
उसका दूध ही  पीकर
मेरे बच्चे भी
आज हट्टे कट्टे 
नौ जवान हो गए हैं
और अब तो वो भी
भैंस मौसी के
मुरीद हो गए हैं ।


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