Tuesday, July 27, 2010

कटाक्ष

अभी कुछ दिनों पहले मैं अपने गाँव गया ,दरअसल उनदिनों गेंहू के लांक ( गेहूं और बाल एक साथ को )उन दोनों को अलग करने का काम यानी के कनक अलग ,और भूसा अलग करने का काम जोरों प़र था क्योंकि बारिस आने वाली थी ,इसलिए जल्दी से जल्दी गेंहू निकालना था ,ताकि दोनों चीजे खराब ना हों ,तो जंगल में घूमता हुआ उधर निकल गया जहां प़र ये सब हो रहा था ,मैंने देखा ,कि हमारे गाँव के प्रधान जी अपने लांक प़र अपने दो बहुत बूढ़े बैलों से दायें चला रहे थे और बैल भी इतने बूढ़े थे कि उनपर चला भी नहीं जा रहा था ,तो उसे देखकर मैंने प्रधान जी से कहा कि ताऊ ,बर्शात सिर प़र है और तुम इन बैलों के साहार कैसे गेंहू निकाल पाओगे ,किसी से ट्रेक्टर वगेरा ही ले लेते तो ज्यादा अच्छा था ,अरे ऐसे में ट्रेक्टर वाला मेरे गेंहूँ निकालेगा या अपने ,फिर ऐसी बात थी तो बैल ही तगड़े ,जवान ,तन्दुरुस्त ही ले लेते काम तो हो जाता ,ऐसी बात नहीं है भाई ,बैल तो मेरे घर में भी चार चार खड़े हैं प़र उनके बसकी गेंहूँ निकालना ना है ,क्यों ताऊ ,देख बेटा उन जवान बैलों प़र क्या रखा है जो इन बूढ़े बैलों प़र है ,तो मैं बोला ताऊ चला तो इनपर जा नहीं रहा ये गेंहूँ क्या निकालेंगे ,अरे ना बेटा ऐसा मत बोल ,इन बैलों प़र जवानी भले ही ना हो प़र तजुर्बा (एक्स्पिरिएन्स ) तो है ,अरे ताऊ जब शरीर में जान ही नहीं है तो तजुर्बा क्या करेगा ,अरे बेटा तू तो भोला है ,ज़रा सोच के जब दो बूढ़े -------------पूरे हिन्दुस्तान को चला रहे है ,क्या उनके शरीर में जान है ,या हिन्दुस्तान में जवानो कि कोई कमी है ,प़र फिर भी तजुर्बा तो है ,तो भाई इन बैलों के पास भी तजुर्बा है ,आई बात समझ में , आ गई ताऊ ,अच्छी तरह आ गई ,कि हमारे देश में रास्त्रपति और प्रधानमंत्री इतनी उम्र के इसीलिए है कि उनके पास तजुर्बा है

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