Tuesday, February 24, 2015

अनोखी कहानी परन्तु सच्ची (पार्ट दो )

इसके बाद तो उसको काम करने का एक जनून सा हो गया और उसे जो भी काम मिला वो करता रहा जैसे पेट्रोल पम्प पर  ,राशन की दूकान पर ,राशन कार्ड फ़ार्म भरकर ,परचून की दूकान पर ,रेलवे के वेगन से पत्थर तक अनलोड किया पर खली नहीं रहा और जो भी पैसा कमाया उसमे से अपने खाने के पैसे रखकर बाकी पैसा अपने गाँव माँ ,भाई बहन के लिए भेज देता और जब काम नहीं मिलता तो अपना खून देकर भी पैसा घर भेज देता और अपने छोटें भाई बहनों को पढ़ने से नहीं रोका ,इसी प्रकार संघर्ष चलता रहा और उस समय में उसने एक १० रुपया माह पर किराये का कमरा भी ले लिया था जिसमे रहता यद्यपि उससे पहले तो वो कभी किसी दोस्त या गाँव वालों के साथ रह लेता था या फिर किसी भी दूकान के चबूतरे पर रात काट लेता और फिर रेलवे के क्वार्टर्स में बने बाथ रूमों में जाकर फ्रेश हो जाता था .
उस समय में उसकी जान पहिचान बहुत से क्रिमिनल लड़कों से भी हुई परन्तु उसने कभी भी उस रास्ते को नहीं चुना और वो नियमित काम ढूंढता और जो भी काम मिल जाता वो ही कर लेता ,उसी दौरान उसकी जान पहिचान एक अच्छे व्यक्ति से भी हुई जिनका नामराधाचरण  शर्मा था ,उन्होंने उसकी बहुत सहायता की और वो भी सभी प्रकार से यानी की तन मन धन और रोटी पानी ,उनकी पत्नी भी बहुत ही समझदार और परोपकारी थी वो भी निस्वार्थ सेवा करने में माहिर थी उनको वो भाबी कहकर सम्बोधित करता था ,शर्मा जी एक लकड़ी पत्थर की दूकान पर काम करते थे ,उनके मालिक का एक दोस्त के एल अरोरा जी थे ,तो शर्मा जी ने अपने मालिक से कहकर उसकी नौकरी उनकी दूकान पर लगवा दी जिस पर अरोरा साहब का व्यापार प्लास्टिक दाने का था ,उन्होंने उसको १५० रुपया माह पर अपनी शॉप पर मुनीम जी रख लिया ,अब वो बहुत ही लगन के साथ अपना काम करता और साथ के साथ प्लास्टिक दाने का काम कैसे किया जाता था सीखता भी रहा क्योँकि वो नौकरी नहीं बल्कि अपना खुद का व्यापार करना चाहता था | और इस प्रका कार्य करते करते उसने वो काम भली भांति सीख लिया और अब तक उसकी तनखा भ ५०० रुपया हो चुकी थी और साथ  में कुछ पार्ट टाइम एकाउंट्स का काम भी पकड़ लिया जिससे वो अपना और घर वालों का गुजारा भली भांति हो जाता था और कुछ रुपया लगभग १५००० तक जोड़ लिया था |

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